भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ था? | Adhyatmik Shakti विशेष लेख
यह Adhyatmik Shakti का विशेष आध्यात्मिक लेख भगवान शिव के जन्म से जुड़े रहस्यों, शिव के अजन्मा स्वरूप, शिवलिंग की उत्पत्ति, पुराणों में वर्णित कथाओं, और शिव तत्व के दार्शनिक अर्थ को सरल एवं शुद्ध हिंदी में विस्तार से समझाता है।
SPIRITUALITY
12/15/20251 min read
भूमिका: क्या भगवान शिव का वास्तव में जन्म हुआ था?
जब भी हिंदू धर्म में भगवान शिव के जन्म की बात आती है, तो सबसे पहला प्रश्न यही उठता है —
“क्या भगवान शिव का जन्म हुआ था?”
क्योंकि शास्त्रों में भगवान शिव को अजन्मा, अनादि, अनंत और स्वयंभू कहा गया है। वे न तो किसी के पुत्र हैं, न किसी से उत्पन्न हुए हैं। फिर भी, पुराणों में शिव के प्रकट होने से जुड़ी अनेक कथाएँ मिलती हैं, जिन्हें सामान्य भाषा में “जन्म” कहा जाता है।
Adhyatmik Shakti के इस लेख में हम समझेंगे कि:
शिव को अजन्मा क्यों कहा जाता है
शिव का प्राकट्य कैसे हुआ
शिवलिंग की उत्पत्ति का रहस्य
ब्रह्मा-विष्णु विवाद और शिव का अवतरण
शिव तत्व का आध्यात्मिक अर्थ
शिव का अर्थ क्या है?
“शिव” कोई साधारण नाम नहीं है।
शिव का अर्थ होता है — कल्याण।
जो सदा शुभ करता है, वही शिव है
जो सृष्टि, स्थिति और संहार के परे है, वही शिव है
जो चेतना का मूल स्रोत है, वही शिव है
शिव कोई केवल देवता नहीं, बल्कि परम चेतना (Supreme Consciousness) हैं।
शिव को अजन्मा क्यों कहा गया है?
शास्त्रों के अनुसार:
शिव का न कोई माता-पिता है
शिव का न कोई आरंभ है
शिव का न कोई अंत है
इसीलिए उन्हें कहा गया है:
“न जन्म न मृत्यु यस्य”
जिसका न जन्म है, न मृत्यु — वही महादेव है
शिव समय से पहले भी थे और समय के बाद भी रहेंगे।
तो फिर ‘शिव का जन्म’ कैसे कहा जाता है?
यहाँ एक महत्वपूर्ण बात समझनी आवश्यक है।
शिव का जन्म नहीं, प्राकट्य होता है
जब-जब सृष्टि में संतुलन बिगड़ता है,
जब-जब अहंकार बढ़ता है,
जब-जब धर्म संकट में पड़ता है —
तब-तब शिव प्रकट होते हैं।
इसी प्राकट्य को कथाओं में “जन्म” कहा गया है।
ब्रह्मा-विष्णु विवाद और शिव का प्राकट्य
यह कथा शिव के प्रकट होने की सबसे प्रसिद्ध कथा मानी जाती है।
कथा का प्रारंभ
एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद हो गया कि:
सृष्टि का सबसे बड़ा देव कौन है?
कौन श्रेष्ठ है — ब्रह्मा या विष्णु?
यह विवाद इतना बढ़ गया कि अहंकार ने दोनों को अंधा कर दिया।
अग्निस्तंभ के रूप में शिव का प्रकट होना
तभी अचानक:
आकाश और पृथ्वी को चीरता हुआ
अनंत ज्योति का एक स्तंभ प्रकट हुआ
जिसका न आदि दिखता था, न अंत
वह था शिव का ज्योतिर्लिंग स्वरूप।
शिव ने स्वयं को किसी रूप में नहीं, बल्कि ऊर्जा के रूप में प्रकट किया।
शिव का आदेश
उस दिव्य स्तंभ से आकाशवाणी हुई:
“जो इस स्तंभ का आदि या अंत खोज लेगा, वही श्रेष्ठ कहलाएगा।”
ब्रह्मा ऊपर की ओर गए।
विष्णु नीचे की ओर गए।
अहंकार का पतन
विष्णु ने स्वीकार किया कि वे अंत नहीं खोज पाए
ब्रह्मा ने झूठा दावा किया कि उन्होंने अंत देख लिया
तभी शिव प्रकट हुए और कहा:
“जो सत्य स्वीकार करे वही श्रेष्ठ है।”
शिव ने ब्रह्मा को दंड दिया और विष्णु को सम्मान।
यहीं से शिवलिंग की उत्पत्ति हुई
वह ज्योति स्तंभ ही आगे चलकर शिवलिंग कहलाया।
शिवलिंग का अर्थ है:
निराकार ईश्वर का प्रतीक
अनंत ऊर्जा का स्वरूप
सृष्टि का मूल आधार
शिवलिंग: जन्म का प्रतीक नहीं, सृष्टि का आधार
बहुत से लोग शिवलिंग को गलत रूप में समझते हैं।
वास्तविक अर्थ में:
शिवलिंग जन्म का नहीं, सृजन शक्ति का प्रतीक है
यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का केंद्र है
इसीलिए शिवलिंग की पूजा की जाती है।
पुराणों में शिव के अवतरण की कथाएँ
1. शिव का स्वयंभू स्वरूप
कई स्थानों पर लिखा है कि शिव स्वयं प्रकट हुए, किसी ने उन्हें जन्म नहीं दिया।
इसीलिए उन्हें:
स्वयंभू
स्वयंजात
स्वप्रकाश
कहा गया।
2. शिव और सती का संबंध
कुछ कथाओं में शिव को दक्ष प्रजापति का दामाद बताया गया है, लेकिन यह सामाजिक कथा है, जन्म कथा नहीं।
शिव सती के पति हैं, पुत्र नहीं।
3. रुद्र रूप में शिव
ऋग्वेद में शिव को “रुद्र” कहा गया है।
रुद्र का अर्थ है:
जो दुख दूर करे
जो अशांति का नाश करे
रुद्र भी अजन्मा हैं।
शिव का न कोई पिता, न माता
शिव को कभी:
कश्यप मुनि का पुत्र
या किसी देव का अवतार
नहीं बताया गया।
वे स्वयं सभी देवों के कारण हैं।
शिव तत्व क्या है?
शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक तत्व हैं।
शिव तत्व का अर्थ
चेतना
शून्यता
मौन
स्थिरता
जहाँ कुछ भी नहीं, वहीं शिव हैं।
शिव और शून्य का संबंध
शिव को शून्य कहा गया है।
पर यह शून्य:
खाली नहीं
बल्कि संभावनाओं से भरा हुआ है
यही कारण है कि शिव ध्यान में मौन रहते हैं।
शिव कैलाश पर क्यों रहते हैं?
कैलाश कोई भौतिक पर्वत नहीं, बल्कि:
चेतना की ऊँचाई
अहंकार से ऊपर की अवस्था
का प्रतीक है।
शिव का जन्म और मानव जीवन
शिव की कथा हमें सिखाती है कि:
अहंकार विनाश का कारण है
सत्य सबसे बड़ा धर्म है
मौन सबसे बड़ा ज्ञान है
महाशिवरात्रि का संबंध जन्म से नहीं, जागरण से है
महाशिवरात्रि:
शिव के जन्म का दिन नहीं
बल्कि शिव तत्व के जागरण का दिन है
यह वह रात है जब:
चेतना ऊँची होती है
मन शांत होता है
आत्मा शिव से जुड़ती है
शिव क्यों नृत्य करते हैं?
नटराज रूप में शिव का नृत्य:
सृष्टि की गति दर्शाता है
जीवन और मृत्यु का संतुलन दिखाता है
यह भी जन्म नहीं, चक्र का प्रतीक है।
Adhyatmik Shakti का दृष्टिकोण
Adhyatmik Shakti के अनुसार:
शिव को किसी जन्म की आवश्यकता नहीं,
क्योंकि वे स्वयं अस्तित्व हैं।
शिव को समझने का अर्थ है:
स्वयं को समझना
अहंकार त्यागना
चेतना में उतरना
क्या शिव कभी जन्म लेंगे?
शिव न जन्म लेते हैं, न मरते हैं।
जब-जब आवश्यकता होगी,
वे किसी न किसी रूप में प्रकट होंगे।
निष्कर्ष
भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ —
वे सदा से हैं, सदा रहेंगे।
शिव:
समय से परे हैं
रूप से परे हैं
कथा से परे हैं
वे केवल अनुभव हैं।
जो शिव को समझ गया,
वह स्वयं को समझ गया।
शिव ही सत्य हैं।
शिव ही शांति हैं।
शिव ही अनंत हैं।
ॐ नमः शिवाय।


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