कलियुग का अंत कब होगा? – आध्यात्मिक शक्ति की दृष्टि में सत्ययुग के आगमन का संकेत

इस लेख में Adhyatmik Shakti के आध्यात्मिक चिन्तन के आधार पर समझाया गया है कि कलियुग का अंत कब होगा, उसके क्या लक्षण हैं, मानव-चेतना किस दिशा में बढ़ रही है, और ईश्वर किस प्रकार संसार को अगले सत्ययुग की ओर ले जाते हैं। यह लेख पूर्णतः धार्मिक, आध्यात्मिक और शुद्ध हिन्दी व्याकरण में लिखा गया है।

SPIRITUALITY

11/17/20251 min read

प्रस्तावना – क्यों हर युग में पूछा जाता है: कलियुग कब समाप्त होगा?

जब-जब संसार में अन्याय बढ़ा है, जब-जब मनुष्यता कमजोर पड़ी है, और जब-जब धर्म के मार्ग से मानव दूर होता गया है, तब-तब यह प्रश्न सबसे बड़ा बनकर उभरा है—
कलियुग का अंत कब होगा?

यह प्रश्न केवल भय से उत्पन्न नहीं होता;
यह उस प्रकाश की खोज है जो अंधकार के बाद अवश्य प्रकट होता है।

Adhyatmik Shakti के अनुसार, कलियुग केवल समय का नाम नहीं है, बल्कि मानव चेतना की वह अवस्था है जिसमें सत्य मंद हो जाता है, धर्म दुर्बल पड़ जाता है और आत्मा का तेज लगभग सो जाता है।
जब चेतना पुनः जागती है, तभी युग बदलता है।

पहला अध्याय – कलियुग क्या है?

धर्मग्रंथों के अनुसार संसार चार युगों के चक्र में घूमता है—
सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग।

कलियुग की मुख्य विशेषताएँ:

  1. सत्य का अभाव

  2. धर्म का क्षय

  3. मानव का भौतिकता की ओर झुकाव

  4. मनुष्य का अपने ही मन से पराजित होना

  5. संघर्ष और भ्रम की वृद्धि

धार्मिक दृष्टि से कलियुग वह समय है जब धर्म के चार स्तम्भ—
सत्य, तप, दया और शौच—
अपनी पूर्णता खो देते हैं।
केवल एक स्तम्भ बचता है, और वह भी कमजोर स्थिति में।

यही कारण है कि कलियुग में मानसिक तनाव, मोह, क्रोध, लोभ, और पाप सबसे अधिक दिखाई देते हैं।

दूसरा अध्याय – क्या कलियुग का अंत महाविनाश से होगा?

बहुत लोग मानते हैं कि कलियुग का अंत किसी भीषण प्रलय से होगा।
परंतु धार्मिक दृष्टि बताती है कि प्रलय दो प्रकार की होती है—

1. बाहरी प्रलय (प्रकृति का परिवर्तन)

यह तब होती है जब पृथ्वी पर प्रकृति अपना संतुलन बदलती है—
अत्यधिक वर्षा, अग्निकांड, ऊर्जा परिवर्तन आदि।

2. भीतरी प्रलय (चेतना का शोधन)

यह अधिक महत्वपूर्ण है।
जब मनुष्य की चेतना बदलती है, जब हृदय में सत्य का उदय होता है, जब अधर्म से मन घृणा करने लगता है—
तभी युगांत की नींव बनती है।

Adhyatmik Shakti इस तथ्य पर बल देती है कि
युग का अंत पहले भीतर होता है, बाहर बाद में।

तीसरा अध्याय – कलियुग के अंत के मुख्य लक्षण

धार्मिक परंपरा में कलियुग के अंत के 10 प्रमुख संकेत बताए गए हैं। उन्हें सरल रूप में समझिए:

  1. मनुष्य की सत्य से दूरी चरम पर पहुँचेगी

  2. झूठ और पाखंड की व्यवस्था खड़ी होगी

  3. परिवार टूटेंगे, संबंध कमजोर पड़ेंगे

  4. मानव लोभ असीम हो जाएगा

  5. प्रकृति कठोर संदेश देगी

  6. सत्ता में अधर्म की वृद्धि होगी

  7. धर्म के नाम पर भ्रम बढ़ेगा

  8. किशोर और युवा आध्यात्मिक सत्य की खोज शुरू करेंगे

  9. दुनिया में एक साथ उथल-पुथल

  10. ईश्वरीय शक्ति का पुनर्जागरण आरम्भ होगा

इन संकेतों में से अनेक आज स्पष्ट दिखाई देते हैं।
यह सिद्ध करता है कि हम कलियुग के गहराई वाले चरण में हैं।

चौथा अध्याय – कलियुग का अंत कैसे होगा?

धार्मिक दृष्टि से कलियुग का अंत दो चरणों में होगा:

1. अंधकार का चरम स्तर पहुँचना

जब अधर्म इतना बढ़ जाएगा कि मनुष्य स्वयं भयभीत होने लगेगा, तब परिवर्तन की इच्छा सार्वभौमिक हो जाएगी।

2. ईश्वरीय प्रकाश का प्रकट होना

युगांत का वास्तविक अर्थ है—
ईश्वर का हस्तक्षेप।

जब संसार अत्यंत पीड़ा में होगा, तब दिव्य ऊर्जा एक बार फिर प्रकट होगी, जैसे हर युग में हुई है।
धर्म की पुनः स्थापना इसी ऊर्जा से होती है।

पाँचवाँ अध्याय – क्या कोई अवतार कलियुग का अंत करेगा?

धार्मिक परंपरा कहती है कि जब पृथ्वी अत्यधिक भार से दब जाती है, तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं।

कलियुग के अंत में भी यह माना जाता है कि—

एक शक्तिशाली दिव्य चेतना अवतरित होगी,
जो अधर्म का नाश और धर्म की पुनः स्थापना करेगी।

परंतु यह अवतार केवल बाहरी रूप से नहीं आता;
मानव हृदय में भी अवतार की शक्ति प्रकट होती है।

Adhyatmik Shakti का मत है:
ईश्वर जब अवतरित होते हैं, पहले मनुष्यों के भीतर अवतार-शक्ति जागती है।

छठा अध्याय – कलियुग का अंत कब होगा?

अब सबसे बड़ा प्रश्न—
कलियुग खत्म कब होगा?

धार्मिक प्रमाणों के अनुसार—

  • कलियुग लगभग 4,32,000 वर्ष का माना जाता है।

  • इसमें से लगभग 5,000 वर्ष बीत चुके हैं।

  • इसका अर्थ है कि मानव अभी शुरुआती 1% ही पार कर चुका है।

लेकिन यह गणना शाब्दिक नहीं बल्कि प्रतीकात्मक भी है।

Adhyatmik Shakti की व्याख्या:

युग-परिवर्तन “तारीख़” से नहीं होता,
बल्कि “चेतना परिवर्तन” से होता है।

कलियुग के अंतिम चरण में हम प्रवेश कर चुके हैं—
यह चरण आने वाले कई सौ वर्षों तक चलेगा।

परंतु अंत का प्रारंभ यहीं से हो चुका है।

सातवाँ अध्याय – क्या सत्ययुग निकट है?

हाँ।
सत्ययुग का बीज अभी बोया जा रहा है।

धार्मिक परंपराएँ कहती हैं कि
हर अंधकार के ठीक बाद प्रकाश आता है।

आज का समय कठिन है, भ्रमित है, तनावपूर्ण है—
परंतु यह समय भी एक ईश्वरीय प्रक्रिया है।

जब मानव थक जाता है,
तभी वह ईश्वर को खोजने लगता है।

आठवाँ अध्याय – मनुष्य की भूमिका क्या है?

कलियुग का अंत केवल ईश्वर नहीं लाते;
मानव भी लाता है।

मनुष्य की भूमिका:

  1. धर्म का पालन

  2. सत्य को जीवन में उतारना

  3. क्रोध, लोभ, ईर्ष्या पर नियंत्रण

  4. ध्यान और साधना द्वारा आत्मा को शक्तिशाली बनाना

  5. संघर्ष के बीच भी दया और करुणा बनाए रखना

जब करोड़ों मनुष्य ऐसा करने लगते हैं—
तब सत्ययुग जन्म लेता है।

नवाँ अध्याय – कलियुग का अंत हमारी पीढ़ी देखेगी या नहीं?

स्पष्ट उत्तर:
नहीं।

लेकिन हम देखेंगे:

  • कलियुग का अंतिम गहरा चरण

  • चेतना का परिवर्तन

  • धर्म की ओर युवा पीढ़ी का झुकाव

  • विश्व में आध्यात्मिक क्रांति

  • ईश्वरीय ऊर्जा का पुनर्जागरण

युगांत हमारी पीढ़ी नहीं देखेगी,
परंतु युगांत का प्रारंभ
हमारी पीढ़ी में ही हो रहा है।

दसवाँ अध्याय – आध्यात्मिक शक्ति क्या कहती है?

Adhyatmik Shakti का स्पष्ट संदेश:

कलियुग का अंत समय से नहीं,
बल्कि चेतना से होगा।

जब पृथ्वी पर पवित्र विचारों की रोशनी बढ़ेगी,
जब मनुष्य अपने भीतर फिर से ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करेगा,
जब धर्म अपने असली रूप में उभरेगा—
तभी कलियुग धीरे-धीरे समाप्त होगा।

समापन – कलियुग का अंत भीतर है, बाहर नहीं

अंत में सत्य बस इतना है—

  • कलियुग मानव के भीतर शुरू हुआ था।

  • कलियुग का अंत भी मानव के भीतर होगा।

  • इसके बाद सत्ययुग का प्रकाश प्रकट होगा।

धर्म, सत्य, प्रेम और करुणा की ऊर्जा ही नया युग जन्म देती है।

और यह प्रक्रिया अभी चल रही है।