ब्रह्मा ने कैसी की सृष्टि की रचना: सृष्टि आरंभ की दिव्य कथा
Adhyatmik Shakti के इस विशेष आध्यात्मिक लेख में जानिए कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना कैसे की, सृष्टि का आरंभ कैसे हुआ, पंचतत्वों की उत्पत्ति कैसे हुई और मानव जीवन को किस उद्देश्य से बनाया गया। यह लेख वेद, पुराण और सनातन दर्शन के आधार पर सृष्टि रहस्य को सरल और गहन हिंदी में समझाता है।
SPIRITUALITY
12/16/20251 min read
भूमिका: सृष्टि का रहस्य और मानव जिज्ञासा
मनुष्य आदि काल से यह प्रश्न करता आया है कि इस विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई। आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, जीव-जंतु, मनुष्य और स्वयं समय—इन सबका आरंभ कैसे हुआ? सनातन धर्म में इस प्रश्न का उत्तर केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और दार्शनिक रूप से भी दिया गया है।
Adhyatmik Shakti के इस लेख में हम उसी दिव्य ज्ञान की यात्रा करेंगे, जहाँ सृष्टि की रचना ब्रह्मा द्वारा की गई मानी जाती है।
सृष्टि से पहले की अवस्था: महाप्रलय और शून्य
सृष्टि से पूर्व कोई पृथ्वी नहीं थी, कोई आकाश नहीं था, न ही दिन-रात का अस्तित्व था। उस समय केवल अनंत शून्य, अंधकार और मौन था। इसे महाप्रलय की अवस्था कहा गया है।
इस अवस्था में न सृष्टि थी, न गति, न समय। केवल परम चेतना विद्यमान थी, जिसे ब्रह्म, परमात्मा या नारायण कहा गया है।
महाप्रलय के समय सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वर में विलीन हो जाती है। यही कारण है कि सनातन दर्शन सृष्टि को अनादि और अनंत मानता है—यह न कभी पूरी तरह उत्पन्न होती है, न पूरी तरह नष्ट।
भगवान विष्णु और सृष्टि का बीज
महाप्रलय के पश्चात जब सृष्टि की पुनः रचना का समय आया, तब भगवान विष्णु योगनिद्रा में क्षीर सागर में शेषनाग पर विराजमान थे।
उनकी नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ। उसी कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ।
यह कमल केवल एक पुष्प नहीं था, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का बीज था।
Adhyatmik Shakti के अनुसार, यह दर्शाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति सौंदर्य, संतुलन और चेतना से होती है, न कि केवल पदार्थ से।
ब्रह्मा का जन्म और प्रथम प्रश्न
कमल से उत्पन्न होने के बाद ब्रह्मा ने चारों दिशाओं में देखा, परंतु उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया। चार मुखों वाले ब्रह्मा ने चारों दिशाओं से सृष्टि को समझने का प्रयास किया।
उन्होंने अपने अस्तित्व का कारण जानना चाहा और कठोर तपस्या की।
दीर्घ तप के पश्चात उन्हें ज्ञान हुआ कि वे सृष्टिकर्ता हैं और उन्हें ब्रह्मांड की रचना करनी है। यह ज्ञान उन्हें स्वयं भगवान विष्णु की चेतना से प्राप्त हुआ।
ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचना का संकल्प
सृष्टि रचना केवल भौतिक क्रिया नहीं थी, बल्कि यह एक दिव्य संकल्प था।
ब्रह्मा ने सबसे पहले यह निश्चय किया कि सृष्टि में संतुलन रहेगा—धर्म और अधर्म, प्रकाश और अंधकार, सुख और दुःख, जीवन और मृत्यु।
Adhyatmik Shakti के अनुसार, यही संतुलन मानव जीवन का आधार है। बिना द्वंद्व के सृष्टि संभव नहीं।
पंचतत्वों की उत्पत्ति
ब्रह्मा ने सबसे पहले पंचमहाभूतों की रचना की:
आकाश – जिसमें ध्वनि का गुण है
वायु – जिसमें स्पर्श का गुण है
अग्नि – जिसमें रूप का गुण है
जल – जिसमें रस का गुण है
पृथ्वी – जिसमें गंध का गुण है
इन पंचतत्वों से ही सम्पूर्ण सृष्टि बनी है। मानव शरीर भी इन्हीं तत्वों से बना है और मृत्यु के बाद इन्हीं में विलीन हो जाता है।
काल, दिशा और प्रकृति की रचना
पंचतत्वों के बाद ब्रह्मा ने काल की रचना की। काल के बिना सृष्टि स्थिर रहती।
फिर दिशाओं का निर्माण हुआ—पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण—ताकि गति और विस्तार संभव हो सके।
इसके बाद प्रकृति की उत्पत्ति हुई, जिसमें तीन गुण हैं:
सत्त्व
रज
तम
ये तीनों गुण सृष्टि को चलायमान रखते हैं।
देवताओं, ऋषियों और लोकों की रचना
ब्रह्मा ने देवताओं की रचना की ताकि सृष्टि का संचालन हो सके।
इसके बाद महर्षियों को उत्पन्न किया, जिनमें नारद, मरीचि, अत्रि जैसे ऋषि शामिल हैं।
फिर चौदह लोकों की रचना हुई—सात ऊर्ध्व लोक और सात अधोलोक।
हर लोक का अपना नियम, ऊर्जा और उद्देश्य है।
मानव की रचना: सृष्टि का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय
ब्रह्मा ने मनुष्य को विशेष उद्देश्य से रचा।
मनुष्य को बुद्धि, विवेक और आत्मज्ञान की क्षमता दी गई।
Adhyatmik Shakti के अनुसार, मानव जीवन केवल भोग के लिए नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति के लिए है।
मनुष्य ही वह प्राणी है जो ईश्वर को जान सकता है।
मनु और मानव जाति की उत्पत्ति
ब्रह्मा के मानस पुत्र मनु कहलाए।
मनु से ही मानव जाति का विस्तार हुआ।
मनु ने समाज के नियम बनाए, जिन्हें मनुस्मृति कहा जाता है।
यह सामाजिक व्यवस्था सृष्टि में व्यवस्था और अनुशासन लाने के लिए थी।
स्त्री और पुरुष का संतुलन
ब्रह्मा ने स्त्री और पुरुष दोनों की रचना की।
स्त्री को शक्ति, करुणा और सृजन का प्रतीक माना गया।
पुरुष को संरक्षण और कर्म का प्रतीक।
सृष्टि तभी चलती है जब दोनों में संतुलन हो।
कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष का सिद्धांत
ब्रह्मा ने कर्म का नियम स्थापित किया।
जो जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल पाता है।
इसी से पुनर्जन्म की अवधारणा उत्पन्न हुई।
मोक्ष वह अवस्था है जहाँ आत्मा जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाती है।
सृष्टि का उद्देश्य क्या है
सृष्टि का उद्देश्य केवल विस्तार नहीं, बल्कि चेतना का विकास है।
हर जीव अपनी यात्रा पर है—अज्ञान से ज्ञान की ओर।
Adhyatmik Shakti यह मानता है कि सृष्टि एक विद्यालय है, जहाँ आत्मा सीखती है।
सृष्टि और आधुनिक विज्ञान
आज का विज्ञान भी मानता है कि ब्रह्मांड का आरंभ एक बिंदु से हुआ।
यह धारणा सनातन दर्शन के बहुत निकट है।
हालाँकि भाषा अलग है, पर सत्य एक ही है।
निष्कर्ष: ब्रह्मा की सृष्टि और हमारा जीवन
ब्रह्मा द्वारा की गई सृष्टि केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन को समझने का माध्यम है।
यह हमें सिखाती है कि हम केवल शरीर नहीं, बल्कि आत्मा हैं।
Adhyatmik Shakti के इस लेख का उद्देश्य यही है कि पाठक सृष्टि को केवल देखने तक सीमित न रखें, बल्कि उसे अनुभव करें।


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