हनुमान जी द्वारा उठाई गई संजीवनी बूटी अब कहाँ है? – Adhyatmak Shakti द्वारा रहस्यमय आध्यात्मिक विश्लेषण

Adhyatmak Shakti के इस विशेष लेख में हम जानेंगे कि हनुमान जी द्वारा लाए गए संजीवनी पर्वत का रहस्य क्या था, वह आज कहाँ है, और उसके पीछे की आध्यात्मिक शक्ति क्या दर्शाती है। यह कथा केवल एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि जीवन, भक्ति और ऊर्जा के गहरे आध्यात्मिक सत्य को भी प्रकट करती है।

SPIRITUALITY

11/5/20251 min read

🌿 हनुमान जी और संजीवनी बूटी का रहस्य | Adhyatmak Shakti दृष्टिकोण

रामायण की कथा में एक ऐसा क्षण आता है जब पूरा धर्म, भक्ति और जीवन जैसे एक धागे पर टिका होता है —
जब लक्ष्मण बेहोश होकर मृत्यु के समीप होते हैं, और उनके जीवन को बचाने के लिए हनुमान जी हिमालय की ओर उड़ान भरते हैं।

यह घटना केवल शौर्य की नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है।
क्योंकि हनुमान जी केवल एक भक्त नहीं थे — वे प्राणशक्ति के साक्षात रूप थे।

🌺 संजीवनी बूटी क्या थी?

संजीवनी बूटी (संस्कृत: “जीवित करने वाली शक्ति”) एक ऐसी दिव्य औषधि बताई गई है जो मृतप्राय व्यक्ति को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखती थी।
रामायण के अनुसार, यह बूटी हिमालय की “द्रोणगिरि पर्वत” पर पाई जाती थी।

जब लक्ष्मण मेघनाद के बाण से मूर्छित हो गए, तो वैद्य सुषेण ने कहा —

“यदि हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर दी जाए, तो लक्ष्मण का प्राण वापस आ सकता है।”

हनुमान जी ने तुरंत निर्णय लिया और पर्वत की ओर उड़ चले।

🏔️ हनुमान जी का द्रोणगिरि पर्वत तक सफर

हनुमान जी जब द्रोणगिरि पहुँचे, तो वहाँ अनगिनत जड़ी-बूटियाँ थीं।
उनकी पहचान कर पाना कठिन था।
उन्होंने यह सोचकर संपूर्ण पर्वत ही उठा लिया और उसे लंका ले आए।

इस घटना का वर्णन वाल्मीकि रामायण से लेकर रामचरितमानस तक सभी ग्रंथों में मिलता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा —

“द्रोणगिरि उठाइ लाए हनुमाना,
जीवन लखन को दीन्ह सुजाना।”

यह वही क्षण था जब हनुमान केवल वानर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक बन गए —
जो “असंभव” को “संभव” कर देते हैं।

🪔 संजीवनी पर्वत आज कहाँ है?

यह प्रश्न सदियों से लोगों के मन में है —
हनुमान जी द्वारा उठाया गया पर्वत अब कहाँ है?

इस विषय पर Adhyatmak Shakti के अध्ययन के अनुसार तीन प्रमुख मत हैं 👇

🧭 1. उत्तराखंड का द्रोणगिरि पर्वत

भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित चमोली ज़िले का “द्रोणगिरि पर्वत” (या “डुनागिरी”) आज भी उसी रूप में मौजूद है।
यह वही स्थान माना जाता है जहाँ से हनुमान जी ने पर्वत उठाया था।

स्थानीय लोग आज भी इसे “संजीवनी पर्वत” कहते हैं।
कहा जाता है कि वहाँ कुछ विशेष प्रकार की औषधियाँ उगती हैं, जिनका वैज्ञानिक रूप से अध्ययन भी हुआ है।

लेकिन रहस्य यह है —
उस पर्वत का एक भाग गायब माना जाता है।
कई स्थानों पर चट्टानों का विन्यास ऐसा दिखता है मानो ऊपर से कोई विशाल टुकड़ा काटा गया हो।

🌋 2. श्रीलंका में “रुमासाला पर्वत”

श्रीलंका के दक्षिणी भाग में स्थित रुमासाला हिल (Rumassala Hill) को स्थानीय लोग हनुमान जी द्वारा लाया गया पर्वत मानते हैं।

यह गॉल (Galle) शहर के पास स्थित है, और यहाँ की मिट्टी और पौधों की प्रजातियाँ भारत के हिमालय क्षेत्र से बिल्कुल मेल खाती हैं।
श्रीलंकाई परंपरा में यह स्थल “संजीवनी पर्वत का अंश” माना जाता है,
जो हनुमान जी के हाथ से गिर गया था।

🌄 3. मध्यप्रदेश का “संजयनी पर्वत”

कुछ विद्वान मानते हैं कि जब हनुमान जी पर्वत लेकर उड़ रहे थे,
तो उसके कुछ टुकड़े रास्ते में गिरे —
जिनमें से एक टुकड़ा मध्यप्रदेश के अमरकंटक के पास संजयनी पर्वत कहलाता है।
यह भी संजीवनी शक्ति के अवशेषों का प्रतीक माना जाता है।

🔮 आध्यात्मिक दृष्टि से “संजीवनी” क्या है?

Adhyatmak Shakti के अनुसार,
संजीवनी केवल एक औषधि नहीं — बल्कि प्राण ऊर्जा (Life Force Energy) का प्रतीक है।

यह वही ऊर्जा है जो प्राणायाम, ध्यान, योग और भक्ति से जगाई जा सकती है।
हनुमान जी उस “संजीवनी शक्ति” के माध्यम थे,
जो हर साधक के भीतर विद्यमान है।

जब किसी साधक के भीतर “अडिग भक्ति”, “श्रद्धा” और “प्राणशक्ति” एक हो जाती है,
तो वही अवस्था “संजीवनी” कहलाती है — जहाँ मृत्यु भी हार मान लेती है।

🌞 वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आधुनिक विज्ञान ने भी इस विषय में रुचि दिखाई है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय की कुछ दुर्लभ औषधियों में मस्तिष्क पुनर्जीवन गुण पाए जाते हैं।

कुछ शोधों में पाया गया कि उत्तराखंड क्षेत्र में “सेल रिजनरेशन” और “ऑक्सीजन बूस्टिंग” जड़ी-बूटियाँ हैं।
हालाँकि “संजीवनी” नामक विशेष पौधा अभी तक नहीं मिला,
परन्तु यह संभव है कि वह अब विलुप्त हो चुका हो या केवल कुछ खास ऊर्जावान स्थलों पर ही जीवित हो।

🔱 हनुमान जी – आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक

हनुमान जी की उड़ान केवल भौतिक उड़ान नहीं थी।
वह थी मन, प्राण और भक्ति की उड़ान।
उन्होंने सिद्ध किया कि —

“भक्ति और विश्वास से बड़ा कोई पर्वत नहीं।”

उनकी शक्ति का मूल स्रोत था –
श्रीराम के प्रति अखंड विश्वास
और यही “संजीवनी” का गूढ़ अर्थ है —
जब विश्वास प्रबल हो जाए, तो मृतप्राय जीवन भी पुनर्जीवित हो जाता है।

🌺 क्या संजीवनी बूटी फिर से मिल सकती है?

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्तर है —
हाँ, लेकिन वह बाहर नहीं, भीतर है।

हर मनुष्य के भीतर एक “संजीवनी” है —
वह प्राण ऊर्जा जो तब जागती है जब हम भक्ति, ध्यान और साधना के माध्यम से
अपने भीतर के हनुमान को जगाते हैं।

जब मन स्थिर हो, हृदय भक्तिपूर्ण हो और आत्मा विश्वास से परिपूर्ण हो,
तब संजीवनी बूटी अपने आप प्रकट होती है —
“जीवन को पुनर्जीवित करने की शक्ति बनकर।”

🕉️ निष्कर्ष: संजीवनी पर्वत – शक्ति का प्रतीक

संजीवनी पर्वत चाहे आज उत्तराखंड, श्रीलंका या मध्यप्रदेश में हो,
उसकी सच्ची पहचान मानव चेतना की संजीवनी है।

हनुमान जी ने हमें यह सिखाया कि —

“जब तक विश्वास और भक्ति जीवित है, तब तक कोई मृत्यु स्थायी नहीं।”

Adhyatmak Shakti के अनुसार,
संजीवनी पर्वत बाहरी नहीं, बल्कि आत्मा की आंतरिक ऊर्जा का रूप है —
जो साधक को जीवन के हर संकट से पुनर्जीवित करती है।

✨ अंतिम संदेश | Adhyatmak Shakti

हनुमान जी केवल एक देवता नहीं, बल्कि
आध्यात्मिक शक्ति के जगे हुए रूप हैं।
संजीवनी बूटी केवल एक जड़ी नहीं,
बल्कि विश्वास, भक्ति और प्राणशक्ति का संगम है।

“जहाँ हनुमान हैं, वहाँ जीवन की कोई हार नहीं।”