गरुड़ पुराण में वर्णित नरक की सजाएँ — मृत्यु के बाद आत्मा को मिलने वाले 28 भयानक दंड

गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा अपने कर्मों के आधार पर नरक या स्वर्ग जाती है। जानिए कौन-से पाप के लिए कौन-सी सजा मिलती है, यमराज आत्मा का न्याय कैसे करते हैं, और ये 28 नरक कैसे आत्मा को मोक्ष या पुनर्जन्म के मार्ग पर भेजते हैं।

SPIRITUALITY

11/10/20251 min read

🕉️ परिचय: मृत्यु के बाद आत्मा का न्याय

हिंदू धर्म के अनुसार, जब कोई मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है, तब उसकी आत्मा तुरंत समाप्त नहीं होती। वह यमलोक की यात्रा करती है, जहाँ यमराज उसके कर्मों के अनुसार न्याय करते हैं।
यह वर्णन गरुड़ पुराण में विस्तार से मिलता है — जहाँ भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ को बताते हैं कि कैसे आत्मा अपने कर्मों के फल भोगने के लिए नरक या स्वर्ग में जाती है।

यह पुराण यह भी समझाता है कि नरक की यातनाएँ दंड नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि की प्रक्रिया हैं — ताकि वह अपने कर्मों से सीख सके और अगले जन्म में सुधार कर सके।

🌸 गरुड़ पुराण में नरक का सिद्धांत

गरुड़ पुराण के “Pretakalpa” और “Naraka Kanda” खंड में बताया गया है कि यमलोक में कुल 28 मुख्य नरक हैं, जहाँ हर आत्मा को उसके विशेष पाप के अनुसार सजा दी जाती है।
यह सजाएँ अत्यंत भयानक हैं — परंतु इनका उद्देश्य आत्मा को कर्म का बोध और शुद्धिकरण प्रदान करना है।

🌿 मृत्यु के बाद आत्मा का मार्ग (The Path of Soul)

गरुड़ पुराण के अनुसार जब कोई व्यक्ति मरता है —

  1. यमदूत आत्मा को शरीर से बाहर निकालते हैं।

  2. आत्मा 11 दिनों तक सूक्ष्म रूप में पृथ्वी पर भटकती है।

  3. 12वें दिन चित्रगुप्त आत्मा का जीवन लेखा यमराज को प्रस्तुत करते हैं।

  4. फिर यमराज निर्णय देते हैं — कौन-सी आत्मा स्वर्ग जाएगी और कौन-सी नरक

यमराज का न्याय केवल कर्मों पर आधारित होता है, न जाति, न धन, न पद — केवल कर्म।

🔱 गरुड़ पुराण में बताए गए प्रमुख 28 नरक और उनकी सजाएँ

नीचे वे नरक बताए गए हैं जहाँ आत्मा अपने किए गए कर्मों का फल भोगती है —

1. तामिस्र (Tamisra)

जो लोग दूसरों की संपत्ति, पत्नी या अधिकार छीनते हैं, उन्हें यहाँ फेंका जाता है।
सजा — आत्मा को आग के कोड़े मारे जाते हैं, और उसे अंधकार में घसीटा जाता है।

2. अंधतामिस्र (Andhatamisra)

जो व्यक्ति विश्वासघात करता है या परिवार को धोखा देता है।
सजा — पूर्ण अंधकार में कैद, जहाँ पीड़ा का कोई अंत नहीं।

3. रौरव (Raurava)

जो दूसरों को कष्ट देता है या निर्दोषों का शोषण करता है।
सजा — आत्मा को विषैले सर्पों द्वारा काटा जाता है।

4. महाराौरव (Maharaurava)

जो दूसरों की पीड़ा में आनंद लेता है।
सजा — आत्मा को जलते हुए साँपों से भरे गड्ढे में डाला जाता है।

5. कुम्भीपाक (Kumbhipaka)

जो पशु हिंसा या वध करता है।
सजा — आत्मा को उबलते तेल के कड़ाह में लंबे समय तक पकाया जाता है।

6. कालसूत्र (Kalasutra)

जो ब्राह्मण या गुरु का अपमान करता है।
सजा — आत्मा को जलती हुई लोहे की भूमि पर नंगे पैर चलाया जाता है।

7. असिपत्रवन (Asipatravana)

जो धर्मग्रंथों का अपमान करते हैं।
सजा — आत्मा को तलवार जैसे पत्तों वाले पेड़ों के जंगल में नंगे होकर दौड़ाया जाता है।

8. शूकरमुख (Shukarmukha)

जो घमंडी और झूठे होते हैं।
सजा — शरीर को सूअर के मुख से काटा जाता है।

9. अंधकूप (Andhakoop)

जो बिना कारण दूसरों को अपमानित करते हैं।
सजा — आत्मा को गहरे अंधे कुएँ में गिरा दिया जाता है जहाँ विषैले जीव काटते रहते हैं।

10. कृष्ण (Krishna Naraka)

जो व्यभिचारी या असत्यवादी होते हैं।
सजा — आत्मा को अंधकार में साँपों से भरे क्षेत्र में फेंका जाता है।

11. रक्तकूल (Raktakula)

जो हिंसा और रक्तपात में आनंद लेते हैं।
सजा — आत्मा रक्त के सागर में गिरती है और वहाँ पिशाच उसे नोंचते हैं।

12. पिशाच (Pishacha)

जो बलात्कार या महिलाओं का अपमान करते हैं।
सजा — आत्मा को राक्षसी रूपी प्राणियों द्वारा खाया जाता है।

13. वैतरणी (Vaitarini)

यह नदी नरक की सीमा पर बहती है, जिसमें मल, रक्त और गंधक का मिश्रण होता है।
जो झूठे, निर्दयी या कर्तव्यविहीन होते हैं, उन्हें यह नदी पार करनी होती है।
सजा — आत्मा जलते कीड़ों और सांपों से ग्रसित होकर पार करती है।

14. साल्मली (Salmali)

जो झूठी गवाही देते हैं या दूसरों की प्रतिष्ठा नष्ट करते हैं।
सजा — आत्मा को काँटेदार पेड़ से बाँधा जाता है।

15. तप्तकुम्भ (Taptakumbha)

जो अपने माता-पिता का अपमान करते हैं।
सजा — आत्मा को उबलते लोहे के बर्तन में डाला जाता है।

16. तप्तलोहमुख (Taptaloha)

जो झूठे साक्ष्य देकर निर्दोषों को फँसाते हैं।
सजा — आत्मा के मुँह में जलता हुआ लोहा डाला जाता है।

17. संघात (Sanghata)

जो जानबूझकर हत्या करते हैं।
सजा — आत्मा को विशाल पत्थरों के बीच कुचला जाता है।

18. शूलप्रोत (Shulaprota)

जो दूसरों को दर्द देकर सुख लेते हैं।
सजा — आत्मा को लोहे के भाले से भेदा जाता है।

19. अविची (Avichi)

जो बिना कारण दूसरों की हत्या करते हैं।
सजा — आत्मा को जलती हुई खाई में बार-बार गिराया जाता है।

20. अपारपत (Apapaata)

जो झूठ बोलकर दूसरों को हानि पहुँचाते हैं।
सजा — आत्मा को ऊँचाई से गिराया जाता है और फिर पुनः जीवित कर वही कष्ट दोहराया जाता है।

21. छूत्र (Chutra)

जो चोरी और व्यभिचार में लिप्त रहते हैं।
सजा — आत्मा को लोहे की जंजीरों में बाँधकर खींचा जाता है।

22. वज्रकंटकशाल्मली (Vajrakantaka Shalmali)

जो दूसरों के श्रम का शोषण करते हैं।
सजा — आत्मा को काँटेदार बिजली जैसे वृक्ष पर लटकाया जाता है।

23. पूरितकुंभ (Purita Kumbha)

जो झूठे वचन देते हैं।
सजा — आत्मा के शरीर में उबलता हुआ जल डाला जाता है।

24. मूत्रभोजन (Mutrabhaksha)

जो अशुद्ध, अपवित्र या नीच कर्म करते हैं।
सजा — आत्मा को मल-मूत्र खाने के लिए बाध्य किया जाता है।

25. श्वभोजन (Shwabhojana)

जो अतिथियों का अपमान करते हैं।
सजा — आत्मा को कुत्तों द्वारा नोचा जाता है।

26. पायोभार (Payobhara)

जो झूठे कर्मकांड और पाखंड करते हैं।
सजा — आत्मा को पत्थरों के नीचे दबाकर कुचल दिया जाता है।

27. प्रेतभोजन (Pretabhaksha)

जो मृत शरीरों का अनादर करते हैं।
सजा — आत्मा को प्रेत-आत्माएँ खा जाती हैं।

28. असंवृत (Asamvrita)

जो अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ते हैं।
सजा — आत्मा को न समाप्त होने वाले अंधकार में भटकना पड़ता है।

🌼 नरक का उद्देश्य — भय नहीं, आत्मशुद्धि

गरुड़ पुराण स्पष्ट करता है कि नरक स्थायी नहीं है।
आत्मा जब अपने कर्मों का फल भोग लेती है, तो वह पुनर्जन्म के लिए भेज दी जाती है।
इसलिए यह सजाएँ सुधार की प्रक्रिया हैं, दंड नहीं।

“नरक आत्मा का विद्यालय है, जहाँ वह अपने कर्मों का फल सीखती है।” — गरुड़ पुराण

🌿 आत्मा को नरक से मुक्ति कैसे मिलती है

धर्मग्रंथों के अनुसार, आत्मा को नरक से मुक्ति मिल सकती है यदि —

  1. जीवित रहते हुए वह अपने पापों का प्रायश्चित करे।

  2. परिवारजन श्राद्ध, पिंडदान और दान-पुण्य करें।

  3. नामस्मरण, गीता पाठ और सत्कर्म निरंतर करें।

🔱 निष्कर्ष: कर्म ही नियति है

गरुड़ पुराण यह संदेश देता है कि मनुष्य का हर विचार, हर कर्म दर्ज होता है।
मृत्यु के बाद कोई रिश्वत, कोई सिफारिश नहीं चलती — केवल कर्म का लेखा।

“जैसा कर्म, वैसा फल।
नरक और स्वर्ग मनुष्य के अपने बनाए मार्ग हैं।”

इसलिए जीवन में धर्म, करुणा, सत्य और प्रेम का पालन करना ही नरक से मुक्ति का सच्चा मार्ग है।
इसी उद्देश्य से Adhyatmik Shakti जैसे मंच ऐसे लेख प्रकाशित करते हैं —
ताकि हम अपने कर्मों को समझें, भय नहीं बल्कि आत्म-जागृति से प्रेरित हों।