महाभारत युद्ध के 18 दिनों की सम्पूर्ण कथा – Adhyatmik Shakti की दृष्टि से कौन कब मरा
यह धार्मिक लेख Adhyatmik Shakti की आध्यात्मिक व्याख्या के आधार पर महाभारत युद्ध के सभी 18 दिनों का पूरा विवरण प्रस्तुत करता है, जिसमें बताया गया है कि किस दिन कौन-सा योद्धा मारा गया और उसका वध किसने किया।
SPIRITUALITY
11/17/20251 min read
प्रस्तावना – धर्म और अधर्म के महान संघर्ष की शुरुआत
महाभारत का युद्ध केवल राजसत्ता के लिए नहीं था,
बल्कि धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश का महायुद्ध था।
18 दिनों के भीतर मानव इतिहास के सबसे भीषण युद्ध का unfold होना इस ग्रंथ को अनंत बना देता है।
हर दिन किसी न किसी महान योद्धा का अंत होता गया।
और प्रत्येक मृत्यु युद्ध की दिशा बदल देती थी।
पहला दिन – भीष्म का प्रहार और युद्ध का आरम्भ
पहले दिन कौरवों की सेना भारी पड़ी।
भीष्म पितामह के नेतृत्व में कौरव सेना ने पांडवों को बड़ी क्षति पहुँचाई।
कोई प्रमुख योद्धा नहीं मरा, लेकिन पांडव सेना बिखर गई।
यह दिन कौरवों के वर्चस्व का संकेत था।
दूसरा दिन – अर्जुन का प्रचंड पलटवार
अगले दिन अर्जुन ने भीष्म पर आक्रमण किया।
भीष्म की शक्ति के सामने अर्जुन को कठिनाई हुई लेकिन फिर भी
अनेकों कौरव सैनिक मारे गए।प्रमुख योद्धाओं की मृत्यु इस दिन नहीं हुई।
तीसरा दिन – भीम का रौद्र रूप
भीम ने इस दिन कौरव सेना पर हल्ला बोल दिया।
भीम ने कौरवों के अनेक शक्तिशाली योद्धाओं को मार गिराया,
पर अब भी कोई बड़े नाम नहीं गिरे थे।युद्ध संतुलित होने लगा।
चौथा दिन – अभिमन्यु की पहली चमक
चौथे दिन अनेक छोटे कौरव योद्धा भीम और अर्जुन द्वारा मारे गए।
इस दिन कोई बड़ा महारथी नहीं मारा गया,
लेकिन युद्ध अब और क्रूर होता गया।
पाँचवाँ दिन – भीष्म–अर्जुन का महान टकराव
पाँचवें दिन भीष्म ने पांडव सेना को फिर से पीछे धकेला।
अर्जुन ने उनका सामना किया।
कोई बड़ा योद्धा नहीं मरा, पर युद्ध की भयंकरता बढ़ गई।
छठा दिन – पांडव सेना का भारी नुकसान
यह दिन कौरवों के नाम रहा।
दुर्योधन की आज्ञा पर भीष्म ने विनाशकारी रूप से प्रहार किए।
कई पांडव सैनिक मारे गए।
कोई प्रमुख योद्धा नहीं मरा।
सातवाँ दिन – द्रोणाचार्य का उभार
द्रोणाचार्य ने युद्ध को क्रूर बना दिया।
पांडव सेना चरम संकट में रही।
यद्यपि इस दिन भी कोई बड़ा महारथी नहीं मरा,
पांडवों की शक्ति टूटने लगी।
आठवाँ दिन – भीम ने कौरवों के पाँच पुत्रों को मारा
इस दिन पहली महत्वपूर्ण मृत्यु हुई।
मरे हुए योद्धा – कौरवों के पाँच पुत्र (उत्तमौजा आदि)
किसने मारा – भीम
भीम ने प्रतिज्ञा की थी कि वह द्रोण के पुत्रों समेत कौरवों के सभी पुत्रों को मारेगा।
यह शुरुआत थी।
नौवाँ दिन – कौरवों की दूसरी बड़ी हानि
कौरवों के अनेक प्रमुख योद्धा भीम द्वारा मारे गए
भीष्म और अर्जुन में भीषण युद्ध हुआ।
अब पांडवों की जीत की हल्की संभावना बनने लगी।
दसवाँ दिन – भीष्म का पतन (सबसे बड़ा मोड़)
मृत्यु / पतन – भीष्म पितामह
किसने गिराया – अर्जुन (शिखंडी को आगे रखकर)
अर्जुन ने शिखंडी को आगे रखकर भीष्म पर प्रहार किए।
भीष्म ने शाप और सत्यप्रतिज्ञा के कारण शिखंडी पर वार नहीं किया और भूमि पर गिर पड़े।
यह युद्ध का सबसे निर्णायक मोड़ था।
ग्यारहवाँ दिन – द्रोणाचार्य बने सेनापति
भीष्म के हटते ही द्रोण सेनापति बने।
मुख्य मृत्यु – अनेक पांडव योद्धा
किसने मारा – द्रोणाचार्य
उन्होंने पांडवों पर अत्यधिक क्षति पहुँचाई।
बारहवाँ दिन – अर्जुन का विनाशकारी रूप
मुख्य मृत्यु – कौरवों के हजारों सैनिक
किसने मारा – अर्जुन
अर्जुन ने इस दिन भारी विनाश किया।
तेरहवाँ दिन – अभिमन्यु का प्रवेश और मृत्यु
यह दिन पूरे युद्ध का सबसे हृदयविदारक दिन था।
मृत – अभिमन्यु
किसने मारा – संयुक्त रूप से (दुर्योधन पुत्र, कर्ण, द्रोण, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कर्ण आदि सभी ने मिलकर)
चक्रव्यूह में फँसाकर अभिमन्यु का अधर्मपूर्वक वध किया गया।
चौदहवाँ दिन – अर्जुन का प्रतिशोध और जयद्रथ वध
मृत – जयद्रथ
किसने मारा – अर्जुन
अर्जुन ने सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का सिर काटकर प्रतिशोध पूरा किया।
इस दिन कई कौरव योद्धा भी मारे गए।
पंद्रहवाँ दिन – द्रोणाचार्य का अंत
मृत – द्रोणाचार्य
किसने मारा – धृष्टद्युम्न
धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य को मारकर अपने जन्म का उद्देश्य पूरा किया।
सोलहवाँ दिन – कर्ण का उदय
मृत – पांडव सेना के अनेक प्रमुख योद्धा
किसने मारा – कर्ण
कर्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों से पांडव सेना को भारी नुकसान पहुँचाया।
सत्रहवाँ दिन – कर्ण वध
मृत – कर्ण
किसने मारा – अर्जुन
कर्ण का रथ धँस गया।
अर्जुन ने कृष्ण की आज्ञा से उसका वध किया।
यह युद्ध का सबसे बड़ा निर्णायक क्षण था।
अठारहवाँ दिन – सारे कौरवों का अंत
मृत – दुर्योधन
किसने मारा – भीम (गदा युद्ध में)
साथ ही—
दुःशासन – भीम ने मारा
अश्वत्थामा ने रात में द्रौपदी के सभी पुत्रों को मारा (सूप्त-निधन)
शकुनि – सहदेव ने मारा
कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा जीवित बचे
18वें दिन के अंत तक कौरव वंश खत्म हो चुका था।
समापन – धर्म की अंतिम विजय
महाभारत का युद्ध यह सिद्ध करता है कि—
अधर्म चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न लगे,
धर्म अंत में जीतता ही है।
Adhyatmik Shakti की दृष्टि में यह युद्ध केवल बाहरी नहीं था,
बल्कि मनुष्य के भीतर के अंधकार और प्रकाश का संघर्ष भी था।


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